परमात्मा !
देखिये परमात्मा कि अगर बात करे तो बहुत ही सूक्ष्म बुद्दि कि आवश्कता है . क्योकि अब बहुत सारी गड़बड़ हो चुकी है महान ऋषियों के समझाने में और हमारे समझने में . बात परमात्मा के स्वरुप की है जिसे समझना बहुत ही जरुरी है तभी बात बन सकेगी, नहीं तो प्रकृति के चक्कर में ही फंसे रह जायेगे. अगर मूर्ति पूजा कि बात करे तो वहा अनेकता है . क्योंकि समझाने वाला समझाना कुछ चाहता था और हम अपनी बुद्दि के अनुसार समझ कुछ गए .
अभी कुछ समय पहले ही मैं ज्ञानी संत सिंह मसकीन जी को सुन रहा था; वो कह रहे थे कि जिनते भी साज़ हुए है बांसुरी है , तबला है, मंदिर में बजने वाली घंटिया है और बहुत सारे साज़ है यह सब महान ऋषियों द्वारा अतिन्द्रिये अवस्था में अन्दर सुनी हुई आवाजे है जिन्हें उन्होंने बहार कि दुनिया को समझाने का प्रयास किया. आज हम बांसुरी सुन कर झूमते तो है पर यह झूमना लौकिक है जब कि इसे बताने वाले का मतलब कुछ और था ; जिन लोगो ने अनहद नाद पर अभ्यास किया है वो इस बात को आसानी से समझ सकते है . यानि बताने वाला बताना कुछ चाहता है और समझने वाला अपने ढग से कुछ और समझ लेता है .
इसीलिए ही हर एक क्षेत्र में भगवान् कि मुर्तिया भी वहा रह रहे लोगो के चेहरों के अनुरूप ही होती है . उतर भारत में भगवान् नैन नक्श उतर भारतीयों जैसे होगे , दक्षिण भारत में दक्षिण भारतीयों जैसे , जापान में जापानियों जैसे और ब्रिटेन में ब्रितानियो जैसे , वहा कि मूर्ति यहाँ नहीं चल सकती और यहाँ कि मूर्ति वहा नहीं चल सकती . समस्या यह नहीं है , समस्या तो उस सर्वशक्ति मान के यथार्थ स्वरुप को समझने कि है . ऐसा भी नही है कि अन्य धर्मो में संतो ने इसके बारे में कुछ कहा नहीं है , कहा है बाबा नानक ने , कहा है संत बुल्ह्हे शाह ने , कहा है सूफी संत मेवलाना जेलालुद्दीन रूमी ने, कहा है प्रभु यीशु ने, कहा है कबीर ने, कितने संतो का नाम गिनाऊ; लिखते लिखेते मैं थक जाउगा और पढ़ते पढ़ते आप थक जायेगे . सभी महान धर्मो के महान संतो ने परमात्मा का असली स्वरुप बताने की हर संभव कोशिश कि है और बहुतेरो ने समझा भी है .
हम सबको भी भगवान् के सच्चे स्वरुप को समझ के उस पर ही चिंतन करना है ताकि बरसो से चली आई गड़बड़ का सुधार हो .
जल्द ही मैं एक बड़े ही सुन्दर लेख "परमात्मा का स्वरुप" के माध्यम से कुछ प्रकाश डालने कि कोशिश करुगा . ...................
2 comments:
sir aap bahut achcha likhte ho.. mujhe god k prati aapka scientic view bahut achcha likha.
my basic question is how will we picturize the God in our Mind ?
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