समय का चक्कर
समय के अन्दर समय चल रहा है यह बात योग वशिष्ठ में एक कहानी के रूप में दर्शाई गयी है और इसके सबन्ध में एक कहानी भगवद पुराण में भी आती है जो की नारद और भगवान् विष्णु के बीच में है उसमे नारद भगवान् विष्णु से पूछते है की " माया क्या है ? तब भगवान् उन्हें पानी लेन भेजते है और वो पानी लेने जब एक सरोवर की किनारे पहुचते है तो अचानक तेज़ हवाए चलने लगती है और वो अपने आप को एक सुशील कन्या के पास खड़ा पाते है उस पर आसक्त हो उससे विवाह रचा लेते है फिर समय बिताता जाता है और पोती-पोते भी हो जाते है तो अचानक प्रलय आ जाती है और वो अपने परिवार का बचने के लिए ईश्वर से गुहार लगते है और तब अपने आप को उसी सरोवर पर खड़ा पाते है जहा वो पानी लेने गए थे - भगवान् विष्णु साथ खड़े है और पूछ रहे है की " क्या बात है नारद पानी लेन में इतनी देर क्यों लगा दी ! नारद हैरान रह जाते है और कहते है कि " मैंने तो कई साल गुज़ार दिए ? यह सब क्या है प्रभु " भगवान् कहते है "यही माया है नारद !"
स्टीफेन हवाकिंस भी यही कहते है कि समय के अन्दर समय चल रहा है !
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