Thursday, March 24, 2011

स्वर योग


स्वर योग
स्वर योग क्याँ हैं.
स्वर योग से हमारा अभिप्राय नसिकाओं में विचरने वाले स्वासँ से है । अगर हम हमारी नासिका के दोनों छिद्रो में विचरने वालें स्वासों पर थोड़ा ध्यान केन्द्रित करें तो निम्नलिखित तीन बातें सामने आती है:-
१. कभी स्वास बायीं तरफ से चल रहा होता है जिसे हम बायाँ स्वर कहेगें ।
२. कभी स्वास दायीं तरफ से चल रहा होता है जिसे हम दायाँ स्वर कहेगें ।
३. कभी स्वास दोनों तरफ चल रही होती हैं जिसे हम शून्य स्वर कहेगें ।
हमारे शरीर में मुख्य रूप से तीन नाड़ीयों में प्राण विचरन करता है ।
१. इड़ा
२. पिगलां
३. सुषम्ना
अब हम इन तीनों नाड़ियों की व इनमें विचरने वाले प्राण की विस्तार से चर्चा करेगे ।
इड़ा नाड़ी
जब स्वास बायी तरफ से चल रहा होता है तो इड़ा का प्रवाह हो रहा होता है । इड़ा का सबन्ध चन्द्र्मा से है इसको चद्र नाड़ी भी कहते है. इसका आरम्भ मूलाधार चक्र से ही होता है यह मूलाधार चक्र के बायी और से होती हुई स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनहद, विशुद्धि नामक चक्रों से होती हुई आज्ञा चक्र में समां जाती है। यह शीतल नाड़ी कहलाती है. यह ऋण आवेशित होती है ।
पिगला नाड़ी
जब स्वास दायीं तरफ से चल रहा होता है तो पिगला का प्रवाह हो रहा होता है । पिगला का सबन्ध सूर्य से है इसको सूर्या नाड़ी भी कहते है । इसका आरम्भ मूलाधार चक्र से ही होता है यह मूलाधार चक्र के दायीं और से होती हुई स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनहद, विशुद्धि नामक चक्रों से होती हुई आज्ञा चक्र में समां जाती है । यह उष्ण नाड़ी कहलाती है. यह घन आवेशित होती है ।
सुषम्ना
जब स्वास दोनो नासिकाओ में एक समान रूप से चल रहा होता है तो सुषम्ना प्रवाहित हो रही होती है । इसे शून्य स्वर भी कहते है. यह मूलाधार चक्र के मध्य से होती हुई स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनहद, विशुद्धि नामक चक्रों के भी मध्य होती हुई आज्ञा चक्र में समां जाती है । इस पर कोई आवेश नही होता ।
इस प्रकार हम नासिका के दोनों छिद्रो में प्रवाहित होने वाले प्राण का पता लगा कर स्वर का पता लगा सकते है ।
अब तत्वो की बात करते है । हिन्दु शास्त्रों के अनुसार हमारा शरीर पाँच तत्वो से मिल कर बना है । जोकि निम्नलिखित है:-
क) पृथ्वि तत्व
ख) अग्नि तत्व
ग) जल तत्व
घ) वायु तत्व
ड़) आकाश तत्व
हर समय इन तत्वों में से कुछ तत्व प्राण के साथ साथ रह्ते है । आमतौर पर एक और विशेष तौर पर दो तत्व भी मौजूद रह सकते है । इन तत्वो की मौजूदगी का आभास कई प्रकार से किया जा सकता है । और इस कला का प्रयोग अपनी आम जिन्दगी के साथ साथ अपने आध्यात्मिक उत्थान के लिये किया सा सकता है। इस कला के माध्यम से हम अपने दैनिक क्रिया कलापों को भी काफ़ी हद तक समझ सकते है ।
तीन अलग नाड़ियों के साथ विभिन्न तत्वों के रहने से मनुष्य शरीर पर व विचारों पर अलग-अलग प्रकार का असर पड़ता है । इसे इस प्रकार से समझा जा सकता है:-
पिगंला नाड़ी के साथ विभिन्न तत्वों का होना:-
जब पृथ्वि तत्व पिगंला के साथ प्रवाह हो रहा होता है तब यदि हम कोई भी कार्य करेंगे तो वह कार्य यकिनन सफ़ल होगा ही । जल तत्व के साथ कार्य सफ़ल होने की सम्भावना तो पुरी होती है पर कुछ समय के लिये । अग्नि, वायु व आकाश तत्वो का पिगंला के साथ होना भौतिक कार्यो के लिये विनाशकारी माना जाता है .
इड़ा नाड़ी के साथ विभिन्न तत्वों का होना:-
जब पृथ्वि तत्व इड़ा के साथ प्रवाह हो रहा होता है तब यदि हम कोई भी कार्य करेंगे तो वह कार्य यकिनन सफ़ल होगा ही । जल तत्व के साथ कार्य सफ़ल होने की सम्भावना तो पुरी होती है पर कुछ समय के लिये । अग्नि, वायु तत्वो का इड़ा के साथ होना भौतिक कार्यो के लिये माध्यमिक माना जाता है् ।
सुषम्ना नाड़ी के साथ विभिन्न तत्वों का होना:-
जब सुषम्ना नाड़ी प्रवाह हो रही होती है और कोई भी तत्व प्रवाहित कर रहा हो तब कोई भी भौतिक कार्य नही करना चाहिये । क्योकिं इस समय कोई भी भौतिक कार्य सिद्ध होगा ही नही । एक योगी के लिये सुषम्ना का प्रवाह होना इस बात का सिग्नल है कि यह समय है ध्यान लगाने का, परमात्मा से बात करने का । जब सुषम्ना के साथ आकाश तत्व प्रवाह हो रहा होता है एक आनन्द की लहर को एक योगी महसूस करता है और इस वक्त जो भी प्रश्न मन में होता है उसका जवाब भी अपने आप ही मिल जाता है । पर ऐसा कुछ सैकेन्ड के लिये होता है । एक योगी एक लिये यही स्वर साधना है सुषम्ना के साथ आकाश तत्व के समय को बढाते जाना व उस परम से असीमित आनन्द का अनुभव करना ।
यह तीन प्रकार की ऊर्जा +ve पिगंला -ve इड़ा व शून्य ऊर्जा सुषम्ना सृष्टि की प्रत्येक कृति में विधमान है । ऊर्जा के यह तीन पहलु ही विभिन्न अनुपातो में मिलकर प्रकृति को सृजन करने को सक्षम बनाते है । यानि प्रकृति इन तीन प्रकार की ऊर्जा के माध्यम से सृजन करती है और ऊर्जा की मात्रा उस विशेष रचना की विशेषता बताती है ।
अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण लेतें है ।
विज्ञान के अनुसार हमारें mind के दो गोलार्द्ध या hemisphere होते है; दायां गोलार्द्ध (Right Hemisphere) व बायां गोलार्द्ध (Left Hemisphere) । दायां गोलार्द्ध (Right Hemisphere) मनुष्य शरीर के बायें भाग (Left part of the body ) को नियन्त्रित करता है | बायां गोलार्द्ध (Left Hemisphere) मनुष्य शरीर के दायें भाग (Right part of the body ) को नियन्त्रित करता है । जब इड़ा नाड़ी प्रवाहित हो रही होती है तब दायां गोलार्द्ध (Right Hemisphere) काम कर रहा होता है व जब पिगला नाड़ी प्रवाहित हो रही होती है तब बायां गोलार्द्ध (Left Hemisphere) काम कर रहा होता है । प्रत्येक गोलार्द्ध विभिन्न प्रकार की भावनायें उतपन्न करनें को उतरदायी होता है । कुछ Neurologists दायें गोलार्द्ध् (Right Hemisphere) को उदास व बायें गोलार्द्ध (Left Hemisphere) को खुशी की भवनाओं से वर्णित करते है । ऐसा भी देखा गया है कि सकारात्मक भावनायें बायें गोलार्द्ध (Left Hemisphere) को सक्रिय कर देती है व नकारात्मक भावनायें दायें गोलार्द्ध (Right Hemisphere) को सक्रिय कर देती है ।
बायां गोलार्द्ध (Left Hemisphere) आक्रामक प्रतिक्रिया करता है व दायां गोलार्द्ध (Right Hemisphere) एक प्रकार की निष्क्रिय प्रतिक्रिया करता है ।
निष्कर्ष : - स्वर योग अद्धभुत है भौतिक जीवन के लिये भी व आध्यात्मिक जीवन के लिये भी । एक योगी स्वर साधना है सुषम्ना के साथ आकाश तत्व के समय को बढाते जाना व उस परम से असीमित आनन्द का अनुभव करना ।

No comments: