प्रकृति के तीन गुण
गीता जी में एक श्लोक आता है जो की इस प्रकार है -
सत्वं रजस्तम इति गुणाः प्रक्रतिसम्भ्वा: |
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम ||
अथार्थ हे अर्जुन ! सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण - ये प्रकृति से उत्पन्न तीनो गुण अविनाशी आत्मा को शरीर में बाँधने वाले है !
सत्वं रजस्तम इति गुणाः प्रक्रतिसम्भ्वा: |
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम ||
अथार्थ हे अर्जुन ! सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण - ये प्रकृति से उत्पन्न तीनो गुण अविनाशी आत्मा को शरीर में बाँधने वाले है !
इस पर एक कहानी स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के बारे में प्रसिद्ध है . यह कहानी उनके घर की है . स्वामी जी को खाने का बहुत शौक था जब भी उनकी पत्नी रसोई बना रही होती थी तो वो रसोईघर के चक्कर काटने लग जाते थे . उनकी इस बात पर उनकी पत्नी को बड़ी ही हैरानी होती थी . एक दिन उनकी पत्नी ने ठान ही लिया कि आज यह बात पूछ कर ही रहूगी . उस दिन जैसे ही स्वामी जी रसोई में आये तो उनकी पत्नी के कहा कि स्वामी जी आज आपसे एक प्रशन पूछना है - परन्तु यह प्रशन मैं पत्नी के नाते नहीं आपकी शिष्या होने के नाते से पूछ रही हू कि आप इतने बड़े संत है परन्तु जब रसोई बन रही होती है तो आप रसोईघर के चक्कर काटने लग जाते है तो क्या आप अभी तक इस बात से ऊपर नहीं उठ पाए ? स्वामी जी उतर देते है हा बिलकुल ठीक केवल यही एक गुण है जिसे मैंने पकड़ रखा है इसी गुण के कारण ही मैं इस शरीर में हु परन्तु एक दिन ऐसा भी आएगा जिस दिन तुम थाली लेकर मेरे कमरे में आओगी और मैं बिना देखे ही कह दूंगा कि आज नहीं - बस उस दिन के ठीक ठीक तीन दिनों बाद मैं इस दुनिया से चला जाऊगा . और ठीक वैस ही हुआ .............
1 comment:
आपका धन्यवाद ! आप जैसे मित्रो से काफी कुछ सीखने को मिलेगा !
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