Sunday, March 27, 2011

त्राटक और अन्तर्त्राटक


त्राटक और अन्तर्त्राटक

त्राटक का अर्थ होता है किसी वस्तु-विशेष लगातार खुली आँखो से टकटकी लगाकर देखते रहना । त्राटक के अभ्यास से एकाग्रता बड़ती है । इससे मन की बिखरी हुई शक्तियों को एकाग्र कर के मानसिक व आध्यात्मिक शक्तियों को बड़ाया जा सकता है  ।

त्राटक की दों अवस्थायें होती है:-

१. त्राटक या बाह्य त्राटक
२. अन्तर्त्राटक

त्राटक या बाह्य त्राटक

इसमें मन को बाह्य वस्तु-विशेष पर एकाग्र किया जाता है. क्योकि हम बाह्य जगत से अधिक जुड़े होते है तो यह अभ्यास बहुत ही आसान रहता है । मन को एकाग्र करने के लिये किसी एसी वस्तु का चुनाव किया जाता है जो मन अच्छी लगे इसके लिये ॐ, कोई धार्मिक चिन्ह, गुरू या इष्ट देव का चित्र, कोई बिन्दु या फिर मोमबत्ती की लौ में से कुछ भी चुना जा सकता है. इसमें आईने का भी ईस्त्माल भी किया जा सकता है ।

अन्तर्त्राटक

इसका अभ्यास मन को अर्न्तमुख बनाने के लिये किया जाता है । पहले बाह्य त्राटक का अभ्यास किया जाता है तब बाह्य त्राटक का अभ्यास करते समय आँखे बन्द करने पर जो बिम्ब दिखायी पड़ता है उसका इस्तमाल अन्तर्त्राटक में किया जाता है ।

त्राटक का अभ्यास अधिकतम स्थिर आसन में किया जाता है इसका अभ्यास सिद्धासन, सिद्धयोनि आसन में करना श्रेयस्कर होता है । इसे सुखासन या बैठ कर भी किया जा सकता है. त्राटक के अभ्यास के लिये कुछ महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार से है:-

१. इसका अभ्यास करते वक्त आँखो को झपकाना नही चाहिये । दृष्टि भी स्थिर होनी चाहिये ।
२. मन को केवल वस्तु या उसके बिम्ब पर ही टिकाये रखना होता है ।
३. इसमें वस्तु को २ फ़ीट की दूरी पर रखा जाता है ।
४. अभ्यास के दौरान जब ध्यान स्थिर हो जाता है तब साक्षी भाव से देखना होता है ।

त्राटक के अभ्यास से अनेक लाभदायक प्रभाव देखने को आते है । इससे स्मरण शक्ति बड़ती है । आँखो की मांसपेशिया मजबूत होती है । इससे आतंरिक ऊर्जा का भण्डार खुल जाता है । भारत में रहस्यमय गुप्त शक्तियां प्राप्त करने के लिये त्राटक का अभ्यास किया जाता है । ईसाइयों में भी प्रतिमाओ, पवित्र चित्रों और धार्मिक चिन्हों पर त्राटक किया जाता है । त्राटक से एकाग्रता बड़ती है क्योंकि इसमें चेतन ऊर्जा को एक बिन्दु की और उन्नमुख किया जाता है तो यह अभ्यास स्वतः ध्यान की और ले जाता है ।

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