Tuesday, March 22, 2011

गीता जी में समाज

गीता जी में भी समाज को चार वर्णों में विभाजित किया हुआ है . ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य व शुद्र. आमतौर पर हम इस बात का गलत मतलब निकाल लेते है . गीता कि सामाजिक अध्यन की पुस्तक नहीं है जो समाज में रह रहे लोगो के वर्णों के बारे में बताएगी . इस बारे में स्वामी श्री परमहंस स्वामी Adgadanand ji जी ने बड़े ही अच्छे ढंग से इसका वर्णन किया है . उनके अनुसार शुद्र वो साधक है जो नए नए साधना मार्ग में आते है और जो थोडा बहुत ही साधना में बैठ पाते है, प्रकृति के तीन गुण बैठने नहीं देते . वैश्य वो साधक है जिनको साधना में कुछ नज़र आने लगता है . क्षत्रिय वो साधक है जिन्होंने प्रकर्ति के तीन गुणों का काटना सीख लिया है . और ब्रह्मण वो साधक है जो प्रकृति के तीन गुणों को काट चुके है - यथार्थ गीता By Swami Adgadanand ji.



No comments: