मै कौन हुं
मैं
मेरा वास्ता
एक ऐसां जहां
जहां इन आखों से देखा नही जा सकता,
जहां इन कानो से सुना नही जा सकता,
जहां इस मुख से बोला नही जा सकता,
जहां इस नाक से सुघां नही जा सकता,
जहां इस मस्तिक से सोचा नही जा सकता,
जहां इन ,इन्द्रियों से कुछ भी मह्सूस नही किया जा सकता,
वहां, जहां न ये शरीर है
और न यह इन्द्रियां
वहां केवल मैं हूं, केवल मैं
और कुछ नही
एक शाश्व्त, एक सत्य, एक आनंद, मैं
जो सदा से हूं, तब भी था अब भी हूं
यह शरीर मेरे लिये है, पर मै शरीर नही हूं,
मै शरीर से पहले भी था और शरीर के बाद भी हूं
मुझे वक्त की परवाह नही, इसका मुझ पर कोई जौर नही,
मै नही चलता इसके साथ, मै नही धलता इसके साथ
मेरा वास्ता उस जहां से है, जहां न वक्त है,
न यह प्रकति और न ही उसके गुण,
वहां केवल मैं हूं, केवल मै.......
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