Saturday, March 26, 2011

देवता गण - कुछ श्रीमद भगवद गीता से !

देवता गण - कुछ श्रीमद भगवद गीता से !

गीता अध्याय ७ श्लोक २० (हिंदी अनुवाद)

उन-उन भोगों कि कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओ को भजते है अथार्त पूजते है ||
गीता अध्याय ७ श्लोक २१ (हिंदी अनुवाद)

जो-जो सकाम भक्त जिस-जिस देवता के स्वरुप को श्रधा से पूजना चाहता है, उस-उस भक्त कि श्रधा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हूँ ||

गीता अध्याय ७ श्लोक २२ (हिंदी अनुवाद)

वह पुरुष उस श्रधा से युक्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किये हुए उन इच्छित भोगों को निसंदेह प्राप्त करता है ||

गीता अध्याय ७ श्लोक २३ (हिंदी अनुवाद)

परन्तु उस अल्प बुद्धि वालो का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओ को पूजने वाले देवताओ को प्राप्त होते है और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजे अंत में वे मुझको ही प्राप्त होते है ||

नोवें अध्याय में भी कुछ श्लोक देवताओ कर कहे गए है जो की इस प्रकार है -
गीता अध्याय ९ श्लोक २३ (हिंदी अनुवाद)
हे अर्जुन ! यधपि श्रधा से युक्त जो सकाम भक्त दुसरे देवताओ की पूजते है, वे भी मुझे ही पूजते है; किन्तु उनका वह पूजन अविधिपूर्वक अथार्त अज्ञान पूर्वक है ||

गीता अध्याय ७ श्लोक २४ (हिंदी अनुवाद)
क्योकि सम्पूर्ण यज्ञो का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूँ ; परन्तु वे मुझ परमेश्वर को तत्व से नहीं जानते; इसी से गिरते है अथार्त पुनर्जन्म को प्राप्त होते है ||

गीता अध्याय ७ श्लोक २५ (हिंदी अनुवाद)
देवताओ को पूजने वाले देवताओ को प्राप्त होते है' पितरो को पूजने वाले पितरो को प्राप्त होते है, भूतो को पूजने वाले भूतो को प्राप्त होते है और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते है | इसीलिए मेरे भक्तो का पुनर्जन्म नहीं होता !

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