सीखना रे योगी ..........
सीखना रे योगी
कही उलझ मत जाना
मन ने ही बनाया है यह खेल, ये जमाना...
तू बस देखना उलझ मत जाना....
वो ’डर’ नही; वो मन है
जो डरा; वो भी मन है
तू बस देखना उलझ मत जाना....
वो ’खुशी’ नही; वो मन है
जो खुश हुआ; वो भी मन है
तू बस देखना उलझ मत जाना....
वो ’गम’ नही; वो मन है
जो ’गमगीन’ हुआ; वो भी मन है
तू बस देखना उलझ मत जाना....
वो ’सोच’ नही; वो मन है
जो सोचता है; वो भी मन है
तू बस देखना उलझ मत जाना....
सीखना रे योगी बस तू सीखना रे !
देखना रे योगी ! बस तू देखना रे !
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