बुद्धि से परे है परमात्मा !
बुद्धि से कैसे परे है परमात्मा ! आईए इस बात को एक व्यवाहरिक उदाहरण के माध्यम से समझते है ! परमात्मा हमसे बिल्कुल अलग है ! इसे हमे समझना है ! आज मानव बहुत ही उन्नति कर चुका है ! तरह तरह मे यन्त्र बन चुके है ! तकनीक बहुत ही उन्नत हो चुकी है ! इस बात से तो सभी सहमत है ! एक यन्त्र की कार्य प्रणाली के माध्यम से मै परमात्मा का बुद्धि से परे होने वाला तथ्य समझाना चाहुगा ! किसी भी यन्त्र को ले कर चलते है जिसमे कृत्रिम बुद्धि का प्रयोग किया गया हो यानि कोई भी स्वतचालित यन्त्र ! उदाहरण के तौर पर एक रोर्बट को लेते है जोकि कृत्रिम बुद्धि के माध्यम से हमारी एक यूनिट में कुछ समान उठाने का काम करता है ! मान लिजिये कि उसकी कृत्रिम बुद्धि में हमने "समान उठाना - उठा कर कुछ कदम आगे ले जाना - एक स्थान पर रखना - यह प्रोग्राम डाल रखा है ! रोर्बट कृत्रिम बुद्धि से बिज़ली द्वारा इन सब बातों का पालन करता है और पालन करता रहता है ! उसे न तो यह पता होता है कि वह जो उठा रहा है वो क्या है और न ही वो यह बात समझ सकता है ! जो समान वो उठा रहा है वो समान क्या काम आयेगा और वह वो समान क्यूं उठा रहा है इन सब बातों से उसे कोई लेना-देना नही होता ! उसे तो बस अपनी कृत्रिम बुद्धि के हिसाब से ही कार्य करते रहना है ! इसके ईलावा और कुछ भी सोचना उसकी बुद्धि से परे है ! उसके लिये यह सोचना तो बिल्कुल ही मुमकिन नही है कि कोई और उससें यह सब कार्य करवा रहा है ! अपने साथ लगे कैमरे से भी वही वस्तुएं देख सकता है जिन्हे उसे देखने की अनुमति है यानि जिन वस्तुओं पर उसके कैमरे से दिखाई देने वाले सेन्सर लगे है ! यानि उसे बनाने वाला इन्सान भी उसके सामने आ जाएं तो भी उसे वह नही समझ सकता ! उसे बनाने वाला बिल्कुल ही उसकी बुद्धि से परे है !
यही फ़र्क है हमारी सोच और परमात्मा में ! इसी प्रकार परमात्मा हमारी बुद्धि से परे है ! है सब जगह पर दिखाई नही देता है ! .............................
1 comment:
बुद्धि इश्वर के अस्तित्व को स्वीकार तो करती है
लेकिन उसतक पहुँचने के मार्ग नहीं दिखला सकती.
बुद्धि तर्क की भाषा जानती है . इश्वर है ये तो मानती है
क्योंकि ये चराचर लोक में उसकी सत्ता सर्वत्र दृष्टिगोचर
है . एक बीज कैसे इतना बड़ा वृक्ष बन जाता है ,किस
तरह एक भ्रूण एक सम्पूर्ण मानव के शरीर में रूपांतरित
हो जाता है . हवा का अस्तित्व तो है पर नजर क्यों नहीं
आती , फूल में गंध तो हैं पर दिखती क्यों नहीं .बहूत सारे
प्रश्न हैं जिनका जवाब नहीं है हमारे तर्कशास्त्र में .
बुद्धि इश्वर को जो हर जीव के रोम रोम में विधमान है को
मानती तो है पर उसतक ले कर नहीं जा सकती . इश्वर
को पाना है तो मंदिर में ले जा सकती है , उसके बारे
में बता सकती है . भजन पूजन करना सीखा सकती है ,
पर उसे कैसे पाया जाए , इस पर मौन हो जाती है . क्योंकि
इश्वर सर्वसत्ता में मौजूद होने के बावजूद भोतिक आँखों से
देखा नहीं जा सकता . जो दीखता नहीं है उसे पाया कैसे जाए,
प्रश्न ये है . जिसका कोई जवाब हमारी बुद्धि या विवेक के पास
नहीं है .
इश्वर को पाने में एक मात्र मन ही सहायक हो सकता
है ,जिसके बारे में हमारे पूर्ववर्ती ऋषि मनीषियों की राय तक
अच्छी नहीं है , पर यही सत्य है की मन ही इश्वर को पाने में
सक्षम है अन्य किसी माध्यम के द्वारा उसे पाना संभव नहीं है .
मन के बारे में कुछ मिथ्या धारणाएं आज भी हम लोगो की हैं .
वो बहूत चंचल है , उसपर नियंत्रण बहूत मुश्किल है .परन्तु
क्या आप जानते हैं की किसी भी प्रकार का योग, ध्यान और
समाधि मन के द्वारा ही संभव है . मन से तेज गतिवान इस
लोक में और कोई नहीं है . मन ही आप को इश्वर का साक्षात्कार
करने में सक्षम है.
इश्वर सर्वत्र व्याप्त होते हुए भी , उसे खुली आँखों से देखना संभव
नहीं है , उसे बंद आँखों से ही देखा जा सकता है ये निर्विवाद
सत्य है .
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