Friday, April 22, 2011

कुछ और ना सुझता था.....


हाहाकार मचा था.. क्रोध का आलम था..
क्रोध था जो बढ़ता ही जा रहा था..
कुछ और ना सुझता था.....

पर अभी मंजर बदला था...
करूणा व्याप्त हो गयी थी....
रोना भी आ रहा था....
कुछ और न सुझता था.....

अब रोना भी बन्द हो रहा था...
चुप्पी आ गयी थी...
वही चुप्पी जो ठीक रोने के बाद ही आती है.....
सब चुप था... बिल्कुल चुप.....
कुछ और न सुझता था......

अब चुप्पी में सें साहस उठा था....
कुछ करने का साहस... कुछ होने का साहस...
अन्दाज़ बदला था ... थोड़ा चैन भी मिला था...
चैन चल रहा था..... आराम मिल रहा था....
खुशी का भी जन्म हो रहा था... हो रहा था....

रुकिये...............
............................
......................................
यह मन था जिसमें भाव-पर-भाव उठ रहे थे.....
मै देख़ रहा था... मै देख़ रहा था....

No comments: