Monday, April 25, 2011

उससे क्यूं मांगते हो.........सब तुम्हारा ही तो है........



श्री मद्भगवद्गीता, बाईबल, कुरान, श्री गुरू ग्रन्थ साहिब व अन्य महान धर्मों के महान ग्रन्थ सभी के सभी इस बात की ओर ईशारा करते है कि परमात्मा ने संसार के जितने भी पदार्थ बनाएं है सब के सब अपनी उतकृष्ट रचना इन्सान के लिये ही बनायें है । हर इन्सान का इन सभी भौतिक पदार्थों पर बराबर का हक़ है । पश्चिम के लेख़को ने इस बात को समझा और इस पर शोध करके और इस तथ्य को सत्य की कसौटी पर ख़रा पाया और सुन्दर-सुन्दर पुस्तकों के रूप में इस बात को समझाने की कौशिश भी की । बहुत से लोगो ने इस बात को समझा और अमल किया और फ़ल भी प्राप्त किया । 

“लुईस हे” ने अपनी रचना "हाऊ टू हील योअर बाडी" में यही बात बताई कि आप अपनी सोच के अनुरूप विभिन्न वस्तुएं, खुशियां और यहां तक कि बिमारियां भी अपने पास बुला सकते है । 

पाउलो कोइलो ने अपनी रचना "द अल्केमिश्ट" में यही बात बताई कि आप जो भी ईच्छा करते है पूरा का पूरा ब्रहमाण्ड उसे पूरा करने में लग जाता है 

डा. जोसेफ़ मर्फ़ी भी यही कहते है कि जिस किसी वस्तु-विशेष का चित्र आप अपने मन में स्थापित करते हो उस वस्तु को मन अपने आप ही आपके जीवन मे ला देता है ।

और भी बहुत ऐसी पुस्तकें है जो इस महान तथ्य को दर्शाती है ।

गीता कहती है - जो भी आप कर्म करोगे उसका फ़ल प्रकृति आपको अवश्य देगी । अच्छा कर्म करोगे तो अच्छा फ़ल मिलेगा और बुरा कर्म करोगें तो बुरा फ़ल मिलेगां । गीता में तीन प्रकार के कर्मों का जिक्र आता है - सात्विक कर्म, राज़सिक कर्म व तामसिक कर्म । तीन तरीकों से ही फ़ल मिलता है और जरूर मिलता है । वो आप पर है कि आप किस प्रकार का फ़ल चाहते है । गीता के अनुसार भगवान ने जो तन्त्र बनाया है उससे प्रकृति से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है । परन्तु इस तन्त्र को ध्यान से देखने से एक बात अच्छी तरह से साफ़ हो जाती है कि हमारा जो लक्ष्य है वो निश्चय ही भौतिक पदार्थ प्राप्त करना नही है । अगर ऐसा होता तो स्वंय परमात्मा का अंश आत्मा के लिये सब की सब भौतिक वस्तुएं अपने आप ही खीचीं चली आती । परन्तु ऐसा इसलिए नही होता क्योकि इसकी कोई आवश्यकता नही है । 

शिवस्वरोद्य नामक महान भारतीए शास्त्र में यह बात बिल्कुल साफ़ है कि हमारे शरीर में कुछ विशेष परिस्थितियां प्रतिदिन आती है । इन परिस्थितियों में जो भी इच्छा की जाये वो पूरी हो जाती है । परन्तु इस महान शास्त्र का मूल उद्देश्य यह बतलाना नही है । 

सकारात्मक चितंन से भी सकारात्मक पदार्थ पैदा किये जा सकते है । इस बात पर भी शोध हो चुके है । परन्तु सकारात्मक चितंन का असली उद्देश्य भी मन को एक सही दिशा दे कर बुद्धि को वश मे कर के आत्मा को परमात्मा में लगाना है । यह बात अलग है कि इससे भौतिक पदार्थ भी प्रकट किये जा सकते है ।

इस प्रकृति से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है । परन्तु किस लिये ? भौतिक पदार्थों से मिलने वाली खुशी क्षणिक होती है यह हम सब समझते है । इन्हे अपने जीवन में उतना ही लाना चाहिये जितनी इनकी आवश्यकता हो । 

ऐसी बात बिल्कुल नही है कि यह सब भौतिक पदार्थ ईश्वर ने हमारे लिये नही किसी और के लिये बनाएं है । परन्तु हमें यह कितने चाहिये इस बात को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है । और हमारा असली उद्देश्य क्यां है यह भी ध्यान में रखना आवश्यक है । अगर यह बात समझ में आ जाये तो इस संसार की सब कि सब वस्तुएं अपने आप ही आपका पीछा करना शुरू कर देगीं । अत: में यही कहुगा कि सब कुछ तुम्हारे लिये ही बना है । मागने की आवश्यकता नही है । जानने की आवश्यकता है ।

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