Saturday, April 9, 2011

सारा खेल मन का !


सारा खेल मन का !

सारा खेल मन का ही रचाया हुआ है । विषय वस्तु इतने है कि मन जीव को इन्द्रियों के माध्यम से कही न कही उलझा ही लेता है । मन जिस भी इन्द्री के साथ रहता है उस इन्द्री को उसके सबन्धित विषय में फ़सा लेता है । उस विषय सबन्धित सूचनाएं जुटा कर मन इतनी जल्दी विश्लेषण करता है कि बुद्धि भी मन के साथ हो लेती है । तब बुद्धि आत्मा को विषयों की ओर प्रेरित कर देती है । यह सब इतनी जल्दी-जल्दी होता है कब जीव विषय विकारो में फ़स गया कि पता ही नही चल पता । तब जीव को यह विषय विकार यह प्रकृति के सभी चक्कर ही सच लगने लगते है । यह संसार ही सत्य जान पड़्ता है । जबकि सब कुछ यान्त्रिक तरीकें से चल रहा है । बात बिल्कुल साफ़ है । जरूरत है एक अच्छे योगी इन्जिनियर की; जो इस प्रक्रिया की  यान्त्रिकता को समझ सके और जीव इस प्रक्रिया को केवल देख सके; इसमे उलझे नही । यही योग है ! यही साधना है ! ...........


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