कबड्डी के मैच की तरह संसार में भी दो पाले हैं.
एक पाला है मन का और दूसरा पाला है ईश्वर का. जब जब मन के पाले में होते है तो
हमारे ऊपर मन का ही राज़ चलता है. मन हमें इस संसार में बांधता है और बांधे रखता
है. और प्रकृति भी हमें कर्म बंधन के अनुसार फल देती रहती है. हम बड़े खुश होते है
की मेरे पास यह है मेरे पास वो है. पर वास्तव में वो मन खुश होता है हमें चक्र में
डाल कर. क्यूंकि जब मृत्यु अटल सत्य है तो हमारा लक्ष्य धन कमाना और विभिन्न वस्तुए
इकठ्ठी करना कैसे हो सकता है.
अब दूसरा पाला है परमात्मा का पाला. मन जल्दी से
इस पाले की और जाने नहीं देता. जैसे इस पाले की और जाने लगते है तो मन हमें भटकाने
लगता है. पर इस पाले में आने के बाद मन का राज़ नहीं चलता क्यूंकि यहाँ सब कुछ साफ़
साफ़ दिखने लगता है और यह भी समझ में आने लगता है की वो मन ही था और कुछ नही.
इस पाले में धीरे धीरे प्रवेश करके मन की जकड़ से
आपने आप को आज़ाद करना है. जब आप अपने आप को आज़ाद कर लेंगे अपने मन से, तभी परमात्मा
को अपने सामने खड़ा पाएंगे.. तभी तो कहते
है – धीरे-धीरे हे मना धीरे सब कुछ होए.
हरि ॐ तत सत.
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