चैतन्य पुरूष गुण नहीं स्वभाव है. यह निष्क्रिय,
उदासीन व प्रकाशवान है. जगत को उत्पन्न करने वाली प्रकृति है, पुरुष तो उसकी लीला देखते
हुए साक्षी के रूप में विधमान रहता है. सुख दुःख शरीर –मन के धर्म है, पुरुष के नहीं . वह इनसे लेशमात्र भी सम्बन्ध नहीं होता.
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